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नशा  उतर जाता है,  आदतें भी छूट जाती है, बस वक्त ही नहीं रुकता...  हाथ कब छूट गए पता ही नहीं चला, पर...   कुछ धुँधली यादें है कि मिटती ही नहीं.. जितना भी उनसे हाथ छुड़ाओ  और कश के पकड़ लेती है... हाँ ख्वाब तो अब भी देखती हूँ, पर  ...  अधूरे है सारे नज़ारे ...     ~ देव