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फरफराते पन्ने ...
खिड़कियों से हवा यूँ उछल के आयी
कि फरफराने लगे टेबुल पर रखे पन्ने ...
कुछ कोरे थे तो कुछ सूखी स्याही से लिपटी
और कुछ अधूरे थे...
उँगलियों ने उनपर पत्थर दाब दिये
पर कहाँ जाते वो उड़कर ?
वो तो उसी कैद में आज़ाद थे...
~ देव
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