अब किताबें झांकती है कंप्यूटर के पर्दो से…


किताबें झांकती है बंद अलमारी के शीशों से
बड़ी हसरत से तकती हैं
महीनें अब मुलाकात नहीं होती
जो शाम उनकी सोहबत में कटा करती थीँ
अब अक्सर गुजर जाती है कंप्यूटर के पर्दो पर
बड़ी बेचैन रहती है किताबें ...

     उपरोक्त पंक्तियाँ गुलज़ार साहब ने लिखी है। और सच ही लिखा है। कितने लम्बे आरसे से किताबें हमारी मित्र रही है। समय के साथ साथ उनका रंग-रूप बदला। प्रारंभिक समय में हाथ से लिखी जाने वाली किताबें की जगह धीरे-धीरे छापे खाने से निकली किताबों ने ले ली। हमने किताबें खरीद के पढ़ी , मांग के पढ़ी। अपने घर में उन्हें संजोया।  हम खुद भी नहीं बता सकते की किताबें कबसे हमारी ज़िन्दगी का एक अहम् हिस्सा बन गयी या हमारी अंतरंग मित्र बन गयी...

किताबें हमें समाज के परिस्थितियों , परिवेश एवं कई नए तथ्यों की सूचनाएं प्रदान कर हमारे ज्ञान का वर्धन करती है। साथ ही हमारा मनोरंजन भी करती है । हमें वैचारिक रूप से समृद्ध करती है।  हमें हमारे अतीत , वर्तमान  एवं भविष्य की बेहतर समझ प्रदान करती है।  और कभी-कभी तो हमारे जीवन-पथ का भी निर्णय करती है।  हमें हमारे उलझनों से निकलकर हताशा में हमारा सहारा बनती है। किताबों जैसा निःस्वार्थ मित्र मेरी दृष्टि में तो और कोई नहीं हो सकता। परन्तु इस नए तकनीकी  दौर में  किताबो का स्वरुप बदलता जा रहा है।  यानि किताबें होके  भी नहीं होती है। यह एक चमत्कार ही है जिसने किताबों के संग्रहण को कई रूपों में मुमकिन बनाया है।  किताबों के स्थान पर बाजार में कई नयी चीज़े आने लगी है जैसे सीडी ,डीवीडी , ई -बुक आदि।  किताब के स्वरुप में हो रहे इस परिवर्तन से किताब के पारम्परिक पाठक नाखुश है। उनके लिए आज भी पन्ने पलटकर, कही भी बैठकर, लेटकर, यात्रा करते हुए यानि किसी भी प्रकार किताब पढ़ने से बेहतर और कुछ नहीं है। वैसे ये एक भावनात्मक मुद्दा है और कुछ हद तक वैयक्तिक रूचि का प्रश्न भी है।  किताबो से हमारा रिश्ता  युगो से है।  कई पाठक इस रिश्ते में किसी भी प्रकार का परिवर्तन देखने को तैयार नहीं होते। हमें उनकी भावनाओ का भी आदर करना चाहिए, साथ ही यह भी समझना चाहिए कि " परिवर्तन निरंतर है " । भोज-पत्र, ताड़ -पत्र  और हस्तलिखित किताबो से अगर हम आज की मुद्रित किताबों के दौड़ में प्रवेश कर चुके है तो यह यात्रा यही तक सीमित  तो नहीं रह सकती। ई -बुक्स किताबों का विकल्प नहीं है अपितु उनका विस्तार है।


आधुनिक संसाधनों ने किताबो की उम्र और पढ़ने का दायरा बढ़ा दिया है।  आज दुनिया के लाखों पुस्तकालय डिजिटलाइज़्ड हो रहे है, ऑनलाइन हो रहे है, हज़ारों की तादाद में ऐसे वेबसाइट मौजूद है जिनपर दुनियाभर के अनगिनत किताबों के बारे में केवल जानकारी ही हासिल नहीं होती बल्कि डाउनलोड कर किताबें पढ़ी भी जा सकती है। ई-बुक्स के आने से कागज पे छपी किताबें विलुप्त नहीं हो सकती। ये दोनों एक-दूसरे के पूरक रहेगी।  
   अभी तक अप्राप्य और दुलर्भ  समझी जाने वाली असंख्य किताबें आज इंटरनेट की दुनियाँ में या तो उपलब्ध है या ऐसा करने के प्रयास वैश्विक स्तर पर चल रहे है। देखा जाए तो किताबो के दुनिया के लिए यह एक वरदान है। 
किताबों का स्वरुप चाहे जो भी हो , इसमें उपयोग किये गए शब्द, विचार और सृजनात्मकता ही महत्व रखती है। असल बात किताब की है , उसकी उपयोगिता और उससे मिलने वाले सुख की है। 

~Devyani

Comments